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कहते है समाज व देश विकास के पथ पर अग्रसर है। लेकिन इस राह में दुराचार व भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आ रहे है, उससे तो यही लग रहा है कि कभी पूरे विश्व को ज्ञान देने वाले भारत के लोग आज खुद ज्ञान से भटक गए है। आज पूरे देश में ज्ञान बांटने वाले लोगों की बाढ़ आ गई है, स्कूल भी इतने आधुनिक खुल गए है कि बच्चों को शुरू से ही संस्कारित होने का दावे करते नहीं थकते। कहा जाता है कि अब समाज एक बेहतर रास्ते में चलने लगा है। लेकिन शायद यह हमारी आंखों में बंधी पट्टी ही है कि हम गर्त में जा रहे अपने देश के समाज व खुद अपने को ही नहीं देख पा रहे है। दिल्ली में दुराचार की एक घटना ने आज पूरे देश को दुराचार के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है। इससे पहले भी इस आजाद देश में लाखों दुराचार के मामले में हुए, लेकिन कहीं से कोई आवाज नहीं आई। अब आवाज उठी है, लेकिन यह आवाज भी अब भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी आवाज की तरह अधिक समय तक नहीं टिक पाएगी। देश आजाद तो जरूर हुआ, लेकिन इस आजादी की परिभाषा के बीच जो छूट दी गई है, वह इस देश में रहने वालों के लिए नहीं है। आज कोई बड़ा अपराध करने पर भी बड़ी सजा नहीं है। केवल फांसी ही सजा रखी गई है, जो ऐसे मामलों में भी नाकाफी है। अगर हम अंग्रेजों के ही दौर को याद करें, तो बेशक हम गुलाम थे। लेकिन इतिहास गवाह है कि उन के समय में भ्रष्टाचार व ऐसे मामलों से कैसे निपटा जाता था। मगर अब यहां कुछ नहीं है। जापान जैसे देश बड़ी बाढ़ त्रासदी के बाद भी उठ खड़े हुए। तो उसका एक ही कारण था कि वहां भ्रष्टाचार नहीं है। लेकिन हमारे यहां सब करने की छूट है। फिर सब कह रहे है कि देश तरक्की कर रहा है। अगर समय रहते स्थिति न संभली, तो यह इस देश के पतन का कारण भी बन सकता है।
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