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बचपन में स्कूल में रोज प्रार्थना से पहले स्कूल में लगे लाउडस्पीकर में एक गाना बजता था, ‘जहां डाल-डाल पर सोने की चिडिय़ा करती है बसेरा….वो भारत देश है मेराÓ सुनकर बहुत अच्छा लगता था। साथ ही कई सवाल भी मन में उठते थे कि क्या सच में भारत में कभी सोने की चिडिय़ा होती थी। बचपन बीत गया तथा अब युवा अवस्था की सरहद में पहुंच गया। लेकिन इस सवाल का जबाव किसी से नहीं मिला। कुछ दिन पहले फेसबुक देख रहा था, तो मेरे सामने तीन चिडिय़ों का एक चित्र आ गया। इस चित्र ने मेरे उस सवाल का जबाव दे दिया, जिसका मैं वर्षों से इंतजार कर रहा था। चित्र के बाईं तरफ में वर्ष 1700 से 1800 के समय की चिडिय़ा बताई गई थी। क्या चिडिय़ा थी, सारे पंख सोने के। सुनहरे रंग की इस चिडिय़ा को देख कर दिल खुश हो गया। इसके बाद वर्ष1947 तक की भारत की चिडिय़ा को बताया गया था, यह चिडिय़ा ठीक थी, लेकिन इसके पंख सोने के न होकर आम पंखों की तरह सफेद हो चुके थे। अभी इन दोनों चित्रों को ही देख रहा था कि 1947 से लेकर 2012 के बीच की भी एक चिडिय़ा प्रकट हो गई। इस चिडिय़ा को देखकर मेरे तो होश गुम हो गए। फेसबुक में किसी कलाकार ने ऐसी चिडिय़ा पेश कर दी थी। जिसे देख कर न हंसी आ रही थी न ही रोना। केवल तरस आ रहा था। इस चिडिय़ा का एक भी पंख नहीं था। जैसे चिकन कार्नर वाले मुर्गे को मारने के बाद उसके पंख हटाते है ठीक वैसी ही चिडिय़ा। दोनों में फर्क केवल इतना था कि चिकन कार्नर वाला मुर्गा मरा होता है, लेकिन फेसबुक में दिखाए जा रही चिडिय़ा सांस ले रही थी। मैं इस चित्र को देखकर भी कुछ अधिक नहीं समझा। तभी इस चित्र के नीचे एक संदेश प्रकट हुआ। इस संदेश ने मेरे बचपन से सोने की चिडिय़ा को लेकर उठ रहे सवाल के सभी जबाव दे डाले। दरअसल इस चिडिय़ा ने देश की तस्वीर बयां की। या यूं कहे कि जहां जहां डाल-डाल पर सोने की चिडिय़ा करती है बसेरा वाले गाने की तस्वीर बयां की। साथ ही यह भी बता दिया कि ऐसी चिडिय़ा भारत में केवल अंग्रेजों की गुलामी से पहले हुआ करती थी। अब तो सामान्य चिडिय़ा के भी दर्शन नहीं हो रहे है। चलो कोई बात नहीं लेकिन इससे मेरे बचपन के प्रश्न का उत्तर मिल गया। वहीं, यह तीन चित्र मेरे सामने वर्तमान देश की काफी दशा भी बयान कर गए। इनको देखकर मुझ में एकदम देशभक्ति का जनून भर आया। और मैंने उसी समय निर्णय लिया कि भारत को फिर से सोने की चिडिय़ा बनाने के लिए मैं भी कुछ करुंगा। तभी दूसरी तरफ लगे टीवी पर समाचार चलने लगे। समाचारों में भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर इस देश की हालत सुधारने वालों का ही हाल बताया जा रहा था। हाल भी ऐसा की कई लोग तो आवाज उठाने के बाद इस हाल पर पहुंच गए थे। वह उसके बाद दोबारा आवाज बुलंद करने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहे थे। एक समाचार में बताया जा रहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू करने वालों के ही खिलाफ बाल की खाल ढूंढने जैसी जांच शुरू की जा रही है। इस जांच के बाद कई तो अब पहले की तरह टेलीविजनों में भी नजर नहीं आ रहे है। केवल इरादों के ही कुछ लोग भारत में फिर से सोने की चिडिय़ा लाने के लिए अपनी जंग जारी रखे हुए है। उधर, दूसरी तरफ देश में रोजाना निकल रहे अरबों करोड़ों रुपये के घोटालों के बीच कुछ विद्वान व आम जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के भाषण के अंश भी दिखाए जा रहे थे। इन अंशों में कहा जा रहा था कि कुछ लोग भ्रष्टाचार के नाम पर मर्यादा लांग रहे है, तो कुछ लोग लोकतंत्र प्रणाली के लिए ही खतरा बनने लगे है। इस बार ऐसे प्रतिनिधि एक नहीं बल्कि विपक्ष से लेकर सता पक्ष तथा अन्य सभी दलों के प्रतिनिधि एक ही आवाज में कह रहे थे। इन अंशों को सुनकर एक ही ख्याल आया कि भई इस जंग में कूदना आसान नहीं है। क्योंकि मैं तो हूं इस देश का आम नागरिक। और मेरा काम केवल वोट देना है। वोट देने पहले ही नेता मेरा पूरा ख्याल रखेंगे। उस समय जो बोल दिया वो ठीक। उसके बाद अगर मैंने यानि आम जनता ने मुंह खोला………तो गजब हो जाएगा। क्योंकि भई भारत देश महान है, लेकिन यहां आम आदमी को केवल वोट देने का ही अधिकार है। उसके बाद नो डिमांड……और न ही कोई सुझाव। केवल मौन……….ओर करो चौथी सोने की चिडिय़ा के आने का इंतजार। जय हो।
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