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मैं पढ़ रहा था कि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। उससे पहले अंग्रेज यहां पर सता चलाते थे। फिर मैंने इतिहास पढ़ा, तो यहां के लोग अंग्रेजों से पहले भी राजाओं के चुंगल में फंसे हुए थे। इस गुलामी को देखते हुए उस दौर में कई लोगों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इस देश को 1947 में आजाद करवा दिया और साथ ही आजादी के जश्न में लाखों लोगों के खून से एक रेखा खींच भारत के दो टुकड़े कर पाकिस्तान व भारत देश भी बना दिए। उसके बाद से आज तक आजादी का जश्न मनाया जाता है। आजादी के मायने क्या है। आजादी यानि आजाद। हम अब आजाद है। लेकिन भारत की मौजूदा तस्वीर को देखकर मेरे मन में लगातार एक ही सवाल उठ रहा है कि आजादी के मायने क्या है। क्या आजादी का मतलब है कि जो लोग अब इस देश की हकूमत को देख रहे है, वो हर तरह से लूट खसूट कर सकते है। उनकी इस लूट को रोकने को लेकर यदि कोई आवाज बुलंद करेगा, तो उसकी इस आवाज को भी किसी न किसी माध्यम से बंद करवा दिया जाएगा। चाहे वो लाठीचार्ज हो या फिर ऐसी शर्तों का पुलिंदा जिसे पूरा ही न किया जा सकता हो। क्या आजादी यह ही है कि जो आम आदमी छोटा सा अपराध कर दे, तो उसे बड़ी सजा और जो नेता या कोई बड़ा अधिकारी देश को लूटे या वो व्यक्ति जो यहां के लोगों को मौत के घाट उतारे, उसे आराम की जिंदगी जीने का मौका मिले। अब फिर वहीं सवाल उठता है कि फिर क्यों कहां जाता है कि 1947 में भारत आजाद हुआ। अगर आजाद हुआ और यहां के लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली, तो वो कहां है। एक स्वतंत्रता सेनानी से कुछ दिन पहले बात हो रही थी, वो कह रहे थे अंग्रेजों ने भारत को उतना नहीं लूटा जितना अब लूटा जा रहा है। अंग्रेजों के समय में भारत में विकास हुआ, जिसे हमारी सरकार आजादी के 62 वर्ष बाद भी नहीं करवा पाई है। अंग्रेजों की एक अच्छाई थी कि वो न तो कामचोरी सहते थे और न ही भ्रष्टाचार को। चाहे वो भ्रष्टाचार भारतीय ने किया हो उनके अपने किसी अधिकारी ने। फिर वहीं सवाल उठता है कि 15 अगस्त 1947 को हमें किस बात की आजादी मिली। जिन लोगों ने यह आजादी खुशहाल भारत का सपना देख कर उस दौर में दिलाई, वो भी अगर आज जिंदा होते तो शायद उनके मन में भी यह सवाल उठा रहा होता कि सच में आजादी के मायने क्या यह है कि भारत को विकास की दिशा में पूरी दुनिया में सबसे आगे बढ़ाने की बजाए हम पूरे विश्व आज सबसे बड़े भ्रष्ट देशों का खिताब हासिल कर रहे है। सवाल यहीं खत्म नहीं होता, सवाल यह भी उठता है कि अब क्या हमें फिर से आजाद होने की जरूरत है। अगर इतिहास के पन्नों को पलटे तो देश के लोगों पर पहले राजाओं ने राज किया, फिर अंग्रेजों ने तो अब कौन कर रहा है। जो भी कर रहा हो, लेकिन इस राज को करने वाले लोगों को क्या यह अधिकार है कि इस देश को इस कदर लूटा जाए कि यह सबसे भ्रष्ट देश कहलाएं। क्या इसके विरूद्ध आवाज उठाने वाले लोगों को साम, दाम, दंड हर प्रकार की नीति से कुचलने का प्रयास किया जाए। आज अन्ना हजारे आजादी की दूसरी लड़ाई लडऩे जा रहे है, लेकिन इस लड़ाई से लडऩे से पहले उन्हें इतनी शर्तों का पुलिंदा थमा दिया गया, जिसे पूरा किया ही नहीं जा सकता। एक आंदोलन के लिए तीन दिन का समय दिया जा रहा, जैसे कोई नाटक होने जा रहा हो। इसके विपरीत अंग्रेजों के समय इतने बड़े आंदोलन हुए, लेकिन उन्होंने तो कभी इस तरह शांतिपूर्वक आंदोलन करने वाले लोगों को कुचलने का प्रयास नहीं किया और उसी दौर में साबित हुआ कि अहिंसा के माध्यम से किया आंदोलन कभी असफल नहीं होता। तो फिर आज क्या हो रहा है। तो क्या यहीं सवाल नहीं उठा रहा कि हम क्या आजाद है और आजादी का जश्न किस रूप में मनाएंगे।
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