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तो तिब्बत न बन जाए हिमाचल

The Voice Of Himalaya
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अभी देश में अपने ही देश के कुछ लोगों द्वारा किए गए घोटालों के बारे में चर्चा की जंग छिड़ी हुई थी। लेकिन अब फिर शरणार्थी के रूप में यहां रह रहे एक तिब्बती गुरु के मठ में विदेशी मुद्रा मिलने के मामले ने नई बहस शुरू कर दी है। बहस कुछ भी हो, लेकिन जो तिब्बती लोग चीन की किसी भी चीज को पसंद नहीं करते, उनके पास ही चीनी करंसी मिल जाए। तो यह देश की सुरक्षा के लिए भी बेहद खतरा है। हालांकि इस बहस के बीच तिब्बती सर्वोच्च धर्मगुरु दलाईलामा को बिल्कुल अलग रखा जाना चाहिए। क्योंकि इतिहास गवाह है कि शांति के इस अग्रदूत द्वारा चीन अधिकृत तिब्बत को आजाद करवाने के लिए शुरू की गई मध्यमार्गीय नीति को कई बार कुछ लोगों ने डिगाने की कोशिश की है। लेकिन अभी तक भारत सरकार का विश्वास भी नहीं जीत सके करमापा लामा के मठ से नौ देशों की करोड़ों की विदेशी मुद्रा मिलना एक गंभीर विषय है। क्योंकि पांच जनवरी 2000 में अचानक उग्येन त्रिनले दोरजे चीन अधिकृत तिब्बत से भागकर भारत में प्रकट हुए थे तथा अपने आप को 17वें करमापा का अवतार बताया था, उस समय उन्होंने अपनी उम्र महज 14 वर्ष बताई थी। लेकिन पीजीआई चंडीगढ़ में उस समय करमापा के हुए एक टेस्ट में उन्हें व्यस्क माना गया था। इसके बाद भारत सरकार ने करमापा को धर्मशाला के पास ग्यूतो मठ में रहने की आज्ञा दे दी। लेकिन उन्हें इस मठ से केवल 15 किमी के दायरे में ही जाने की अभी तक आज्ञा है। जबकि हिमाचल-प्रदेश के बैजनाथ के पास मौजूद भट्टू गांव में शेराबिलिंग बौद्ध मठ के प्रमुख गुरु ताई सितु रिपोंछे, जो करमापा के गुरु भी है, उनसे करमापा के मिलने पर पूरी मनाही लगाई गई। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठने लगा है कि कहीं करमापा चीनी जासूस तो नहीं। यह जांच का विषय है। लेकिन अगर भारत में 1959 में शरण लेने से लेकर अब तक के इतिहास पर नजर दौड़ाए, तो खासकर हिमाचल-प्रदेश में निर्वासित तिब्बतियों ने अपने इतने बड़े भवन व मठ तैयार कर लिए है कि उसके आगे भारत के भवन भी बौने पड़ जाए। यहीं नहीं तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के मठ व भवन को छोड़कर जिला कांगड़ा व कुछ अन्य जिलों में निर्वासित तिब्बतियों ने करोड़ों के मठ व भवनों सहित पूरे गांव ही तैयार कर दिए है। सबसे हैरानी की बात यह है कि इन गांवों के पुराने नामों को दरकिनार कर इनको अब तिब्बती भाषा के नामों से ही नवाज दिया गया है। भले ही इस ओर अभी किसी का कोई ध्यान न हो। लेकिन आने वाले वर्षों में इस निर्माण के सहारे तिब्बती लोग और चीन हिमाचल-प्रदेश को भी अपना ही अभिन्न अंग बता सकता है। ऐसे में इस बारे अभी जागना होगा।

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