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हिमाचल प्रदेश में हिल्स एरिया की स्थापना के साथ-साथ अंग्रेजी हकूमत ने यहां के लोगों को दो बड़े तोहफे भी दिए है। जिनके लिए आज भी यहां के लोग अंग्रेजों को याद करने से नहीं चूकते। इनमें है कालका-शिमला व पठानकोट-जोगेंद्रनगर नैरोगेज रेलमार्ग। इनको बेहद कम समय में कठिन परिस्थितियों में स्थानीय लोगों के सहयोग से बेहद कम समय में अंग्रेजी हकूमत ने तैयार करवाया था। लेकिन आजादी के बाद एक लंबा समय गुजर जाने के बाद भी यह रेलमार्ग जस का तस ही है। इसे आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया गया। पुराना मार्ग होने के कारण कालका-शिमला रेलमार्ग को तो अब हैरीटेज का भी दर्जा मिल गया है। जबकि पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलमार्ग भी इस दर्जा की कतार में है। यह रेलमार्ग अपने आप में भी भी बेहद अजूबे है। कालका-शिमला रेलमार्ग करीब 97 किमी लंबा है और बेहद घुमावदार मार्ग के साथ-साथ इस मार्ग में कुल 103 सुरंगे भी बनाई गई है। जबकि हिमाचल की पहली विद्युत परियोजना ‘शाननÓ को बनाने के लिए बनाया गया पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलमार्ग कुल 165 किमी लंबा है तथा इस मार्ग में दो सुरंगे व 950 छोटे बड़े पुल है। इन मार्गों में दौड़ती टॉय ट्रेन स्थानीय यात्रियों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी काफी रोचक यात्रा का अनुभव करवाती है। कहीं सात तो कहीं चार डिब्बों की दौड़ रही ट्रेन को दूर से देखने का भी अलग ही नजारा है। इनमें कालका-शिमला रेलमार्ग की अगर बात करें तो इसे अंग्रेज हकूमत ने हिमाचल के एक साधारण व्यक्ति भलखू की मदद से तैयार करवाया था। वहीं, इसमें कई अन्य लोगों का भी योगदान रहा है। कुछ दिन पहले इस मार्ग में जाने का मौका मिला तथा इस मार्ग में सोलन के पास बड़ोग रेलवे स्टेशन भी देखा। बेहद खूबसूरत बड़ोग रेलवे स्टेशन के पास इस मार्ग से सबसे बड़ी सुरंग है। यहां जो पढऩे को मिला उसे पढ़कर मैं बेहद हैरान हुआ। दरअसल जिस समय इस मार्ग का निर्माण हुआ उस समय एक अंग्रेज इंजीनियर बड़ोग को सोलन के पास उक्त सबसे बड़ी सुरंग को बनाने की जिम्मेवारी थी। नाप-नपाई में कुछ अंतर होने के कारण सुरंग का एक किनारा निर्धारित राह से भटक गया। इस पर उस समय अंग्रेज सरकार ने उक्त इंजीनियर को एक रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। उक्त इंजीनियर बड़ोग ने अपनी गलती मानी तथा इसे एक बड़ी चूक मानते हुए उसी स्थान पर अपने प्राण भी त्याग दिए। जिसके बाद इस स्टेशन का नाम भी उसी इंजीनियर के नाम पर बड़ोग पड़ा तथा इंजीनियर बड़ोग की समाधि भी इसी स्टेशन के पास एक जंगल में है। जबकि गलत सुरंग का किनारा भी यहीं पास में है। इसके विपरीत आज कई लोग बड़ी गलतियां कर रहे है। लेकिन वह अपनी गलती मानना तो दूर, उन्हें कोई बड़ी सजा तक नहीं मिल पा रही है। देश में आजादी के बाद कई ऐसे हादसे हुए जिनमें निर्माण के कुछ समय बाद ही पुल गिर गया हो या फिर कोई भवन सीमेंट को चुराने के चक्कर में धराशाही होकर कई लोगों की समाधि बन गया हो। मगर ऐसे लोगों को कोई परवाह नहीं। जबकि एक अंग्रेज इंजीनियर जो सुरंग अभी बनी भी नहीं थी और उसमें थोड़ी सी गलती होने से ही अपने आप को इतना शर्मिंदा महसूस कर गया था कि उसने अपनी जान तक ही दे दी थी। इस मार्ग में बाबा भलखू का भी काफी योगदान रहा था, जिन्होंने इस मार्ग को एक छोटी से लकड़ी के सहारे से माप कर इसका कार्य करवाया था। वहीं, पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेलमार्ग को अंग्रेज कर्नल बैट्टी ने हिमाचल-प्रदेश के जोगेंद्रनगर में पहला विद्युत पावर हाउस बनाने के लिए मशीनरी पहुंचाने के लिए वर्ष 1926 में बनवाना शुरू किया था तथा यह वर्ष 1929 में बनकर तैयार हुआ था। इन मार्गों पर ट्रेन में यात्रा का करने का लुत्फ ही अलग है। कालका-शिमला मार्ग में सबसे अधिक लुत्फ रेल कार में यात्रा करने का है। तो कभी अगर आप को मौका मिले तो इस मार्ग में जरूर यात्रा करना।
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