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कुछ माह पहले हिमाचल-प्रदेश के बड़ा भंगाल घाटी जाने का मौका मिला। धौलाधार व पीर पंजाल श्रृंखला के बीच करीब 80 किमी पैदल सफर तय कर तथा 14 हजार फुट की ऊंचाई पर मौजूद थमसर गलेशियर को पार कर इस घाटी तक पहुंचा गया। दुर्गम परिस्थितियों के बाद जब रावी नदी के किनारे पर बसे घाटी के बड़ा भंगाल गांव के सौंदर्य को देखा गया, तो मानो ऐसा लगा जैसे किसी आलौकिक दुनिया में कदम रख दिया हो। यह वहीं गांव है, जिससे कुछ फासले पर ही प्रसिद्ध रावी नदी का भी उद्गम स्थान है। यह गांव दो हिस्सों में बंटा हुआ था। इसमें एक हिस्सा पहाड़ी पर था तो दूसरा हिस्सा रावी नदी के किनारे पर। आबादी करीब छह सौ। यहां के लोग बेहद सादा जीवन व्यतीत करते है। साल के छह माह तक इस गांव की आवाजाही बर्फ पड़ जाने से पूरी तरह से बंद हो जाती है। इस दौरान गांव के अधिकतर लोग बैजनाथ के बीड़ गांव में पलायन कर जाते है तथा उस दौरान बर्फ से घिरे इस गांव में महज 20-30 लोग ही रहते है। इनमें सबसे अधिक आंकड़ा उन बुजुर्ग लोगों का होता है, तो सड़क सुविधा न होने के कारण पैदल नहीं चल सकते। इस गांव में पिछले कुछ वर्षों से कुछ विकास तो हुआ है, लेकिन सड़क के बिना यह गांव आज भी अधूरा है। गांव में विकास के नाम पर एक सेटलाइट फोन व एक छोटे से पावर हाउस का इंतजाम है। जब गांव के अंदर जाया गया, तो कई रहस्य सामने आए। इसमें गांव से जुड़े रहस्यों सहित ऐसी बातें भी पता चली जो बाते आज के युग मेंं झूठी लगती हो। गावं के कुछ बुजुर्गों से मुलाकात हुई तथा पहाड़ी भाषा में बातों का भी सिलसिला चला। तो अंचिभत होना पड़ गया। इसमें कुछ अधिकतर बुजुर्ग कभी इस घाटी से बाहर ही नहीं निकले, वो यह नहीं जानते कि प्रधानमंत्री क्या होता है या निचली दुनिया में क्या हो रहा है। बस या ट्रेन क्या होती है, वो वह भी नहीं जानते। हां कभी आपदा के समय या चुनाव के समय यहां हेलीकाप्टर पहुंचता है, तो इस गांव के इस लोग हेलीकाप्टर को जरूर जानते है। गांव के लोगों को राजनीति से लेकर कहां क्या हो रहा कुछ नहीं जानते। कई दशकों से वह इसी घाटी में रह रहे है। उनके लिए यहीं एक दुनिया है और वो इसी दुनिया में खुश है।
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