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भारत-चीन युद्ध के समय 1962 में शहीद हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के कला ग्राम अंद्रेटा के साथ लगते अगोजर गांव के कर्मचंद का 48 वर्ष बाद कुछ दिन पहले राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ। यह पहला मौका था, जब इतने साल बाद किसी सैनिक की पार्थिव देह के अवशेष मिले हों तथा बाद में उनका पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया हो। कर्मचंद ने 22 वर्ष की उम्र में अरुणाचल प्रदेश के बेलोंग में भारत-चीन युद्ध के समय 16 नवंबर 1962 को देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। लेकिन उस समय वहां बर्फबारी होने तथा युद्ध चलने के कारण कर्मचंद सहित वहां अस्थायी रूप से तैनात फोर्थ डोगरा रेजीमेंट के कई जवानों का कोई पता नहीं चल सका था। उस समय कर्मचंद के परिजनों को केवल यही जानकारी मिली थी कि उनका बेटा शहीद हो गया है, लेकिन उसके शव का कोई पता नहीं चल सका था। इसके बावजूद उनके घर वालों को कर्मचंद के लौटने का इंतजार रहा।
इसी दौरान कर्मचंद के पिता कश्मीर सिंह कटोच व माता गायत्री देवी का निधन हो गया। जबकि उनके बड़े भाई जनक चंद की भी इसी बीच घर के पास ही बिजली गिरने से मौत हो गई थी। उनके घर में केवल शहीद कर्मचंद की भाभी वीना देवी, उनके बेटे जसवंत व परिवार के सदस्य ही हैं जो यह उम्मीद को छोड़ चुके थे कि उनके चाचा कर्मचंद अब लौट कर आएंगे। लेकिन पहली जुलाई को अरुणाचल प्रदेश के ऐंजा जिले में हेउलिंग-बेलोंग बार्डर रोड में जपाक नाले के पास बारिश के कारण भू-स्खलन हो गया। इस दौरान वहां कार्य कर रहे बार्डर रोड टास्क फोर्स के मजदूरों को एक गन, एक पहचान दर्शाने वाली डिस्क व एक अंगूठी मिली। इसकी सूचना पुलिस व आर्मी को दी गई। इसके बाद डिस्क के नंबर के माध्यम से रिकार्ड देखने पर पता चला कि यह पहचान डिस्क सिपाही कर्मचंद की है। इसके बाद सेना उस क्षेत्र में तलाशी अभियान शुरू किया। इस दौरान पांच जुलाई को सेना को उसी स्थान से एक फुट ऊपर कर्मचंद के शरीर के कुछ अवशेष व वहीं साथ में पड़ी उनकी वेतन बुक व एक फाउंटेशन पेन भी मिला। वेतन बुक पूरी तरह से सही सलामत थी। इसी आधार पर यह पुष्टि हुई कि यह शरीर के अवशेष कर्मचंद के हैं।
पहली बार सामने आये ऐसे मामले ने सब को हेरान कर दिया. कर्म चंद अपने जीवन से दुगने बर्फ माय दफ़न रहे और उस क बाद घर पहंचे । उनकी सहादत कू सलाम है।
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